बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 11)

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बिल्लेसुर जीवन-संग्राम में उतरे। 

पहले गायों के काम की बहुत-सी बातें न कही गई थीं, वे सामने आईं।

 गोबर उठाना, जगह साफ़ करना, मूत पर राख छोड़ना, कंडे पाथना, कभी कभी गायों को नहलाना आदि भीतरी बहुत सी बातें थीं।

 दरअस्ल फुर्सत न मिलती थी। पर बिना चिट्ठी लगाये पूरा न पड़ता था।

 पास-पास की चिट्ठियाँ मिलती थीं, जैसा सत्तीदीन कह गये थे। 

एक चिट्ठी के तीन आने मिलते थे। 

कुछ दिनों में बिल्लेसुर को मालूम हुआ, दूर की चिट्ठी में दूना मिलता है।

 उन्होंने हाथ बढ़ाया। 

तहसील के जमादार ने कहा, न तुम नौकर हो, न किसी की एवज़ पर हो, फिर सत्तीदीन ने मना किया है, दूर की चिट्ठी हम न देंगे।

 बिल्लेसुर पैरों पड़े, कहा, नौकर तो आप ही करेंगे, तब तक दूरवाली चिट्ठी भी दें, मैं बारह कोस छः घण्टे में जाऊँगा-आऊँगा। 

जमादार चिट्ठी देने लगे।

चिट्ठी लगाना सत्तीदीन की स्त्री को अखरता था।

 बिल्लेसुर लौटकर सदा चढ़ी त्योरियाँ देखते थे। 

गोकि काम में कसर न रहती थी। दस बजे तक कुल काम कर जाते थे।

 लौटकर गायों को खोल लाते थे और रात नौ बजे तक उनके पीछे लगे रहते थे। फिर भी सत्तीदीन की स्त्री की शिकन न मिटती थी। 

दूसरा नौकर भी न रक्खा, क्योंकि बिल्लेसुर सस्ते थे। बातें कभी कभी सुनाती थीं जो कानों को प्यारी न थीं, और उनसे पेट की आँतें निकलने को होती थीं। 

बिल्लेसुर बरदाश्त करते थे। 

गरमी के दिनों में दस बारह बजे तक घर का कुछ काम करते थे, फिर चिट्ठी लगाते हुए, देर हुई सोचकर धूप में, नंगे सिर, बिना छाता, दौड़ते हुए रास्ता पार करते थे।

 लौटते थे, हाँफते हुए, मुँह का थूक सूखा हुआ, होंठ सिमटे हुए, पसीने-पसीने, दिल धड़कता हुआ, यहाँ का बाक़ी काम करने के लिये।

 पहुँचकर ज़मीन पर ज़रा बैठते थे कि सत्तीदीन की स्त्री पूछती थीं, कितना कमा लाये बिल्लेसुर? ज़बान छुरी से पैनी, मतलब हलाल करता हुआ। 

बिल्लेसुर उस गरमी में बनावटी नरमी लाते हुए, खीस निपोड़कर जवाब देते हुए, ज़रा सुस्ताकर गायों के पीछे तरह तरह के काम में दौड़ते हुए।

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